हनुमान आरती : आरती कीजै हनुमान लला की | Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics, Image With Pdf

चलिए यहां पढ़ते हैं आरती कीजै हनुमान लला की आरती हनुमान जी की आरती है जो कि भगवान हनुमान जी पूजा के बाद स्मरण की जाती है आरती के Lyrics के बाद PDF और Video भी है जरूर देखे।



Hanuman Aarti Lyrics 

॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं,जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं,श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥

॥ आरती ॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरवर काँपे।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

दे वीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाये॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

लंका जारि असुर संहारे।
सियाराम जी के काज सँवारे॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे।
लाये संजिवन प्राण उबारे॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

पैठि पताल तोरि जमकारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाईं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे॥
लंक विध्वंस किये रघुराई।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥


Hanuman Aarti Pdf

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hanuman ji ki aarti video 


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हनुमान लला की आरती के पूरा होने के बाद यह पूजा में उपस्थित सभी व्यक्ति को दिखाया जाता है, कि वह अंधेरे को हटाने के प्रतीक पवित्र दीपक के आग को देखें और थोड़ा स्पर्श करें।


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आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
हम सभी वीर हनुमान की आरती करते हैं। वे दुष्टों का संहार करने वाले और श्रीराम के परम भक्त हैं।

जाके बल से गिरिवर कांपै, रोग दोष जाके निकट न झांकै।
हनुमान जी की शक्ति से बड़े-बड़े पर्वत तक कांप जाते हैं। उनके प्रभाव से किसी भी प्रकार का रोग या मन का कोई दोष हमारे पास भी नही आ सकता हैं।

अंजनि पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई।
माँ अंजनी ने एक महान पुत्र को जन्म दिया हैं जो संतों अर्थात अच्छे लोगों के हमेशा सहायक रहे हैं।

दे बीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाई।
श्रीराम ने उन्हें माता सीता को ढूंढने का महान कार्य दिया था जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक किया। वे रावण की नगरी लंका को जलाकर माता सीता का पता लगाकर आये।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई।
रामेश्वरम से लंका सौ योजन की दूरी पर थी लेकिन पवन पुत्र हनुमान ने उसे पार करने में एक क्षण भी नही लगाया।

लंका जारि असुर संहारे, सीता रामजी के काज संवारे।
हनुमान ने लंका को जलाकर नष्ट कर दिया और वहां के राक्षसों का नाश कर दिया। ऐसा करके उन्होंने माता सीता व श्रीराम के कार्यों को और सरल बना दिया।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे, आनि संजीवन प्राण उबारे।
मेघनाद के शक्तिबाण के प्रभाव से लक्ष्मण मूर्छित अवस्था में पड़े थे लेकिन हनुमान जी ने समय पर संजीवनी बूटी लाकर उनके प्राणों की रक्षा की थी।

पैठि पाताल तोरि जम कारे, अहिरावन की भुजा उखारे।
जब अहिरावण श्रीराम व लक्ष्मण को पाताल लोक ले गया तब आप ने ही अहिरावण का वध कर श्रीराम व लक्ष्मण को उसके बंधन से मुक्त कराया था।

बायें भुजा असुर दल मारे, दाहिने भुजा संत जन तारे।
हनुमान जी अपने एक हाथ से (बाहिने) राक्षसों का संहार करते हैं तो दूसरे हाथ से (दाहिने) संतों का भला करते हैं।

सुर नरमुनिजन आरती उतारें, जय जय जय हनुमान उचारें।
सभी देवतागण, मनुष्य, ऋषि-मुनि आपकी ही आरती करते हैं और आपकी जय-जयकार करते हैं।

कंचन थार कपूर की बाती, आरति करत अंजना माई।
आपकी माता अंजनी भी पूरे विधि-विधान के साथ आपकी आरती करती हैं।

जो हनुमानजी की आरती गावै, बसि बैकुण्ठ अमर फल पावै।
जो भी भक्तगण हनुमान जी की सच्चे मन से आरती करते हैं, उन्हें बैकुण्ठ धाम में जन्म लेने का सुखद फल प्राप्त होता हैं।

लंका विध्वंस किये रघुराई, तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई।
श्रीराम ने रावण का वध कर संपूर्ण लंका का राक्षसों सहित विध्वंस कर दिया हैं और गोस्वामी तुलसीदास जी उनकी कीर्ति का बखान स्वयं करते हैं।

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हनुमान जी से क्षमा याचना कैसे करें?

हनुमानजी की पूजा करते हुए इस मंत्र को पढ़कर उनसे क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए: मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं कपीश्वर। यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु में॥


हनुमान जी का प्रिय मंत्र कौन सा है?

ॐ हं हनुमते नम:. ‘ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥



हनुमान जी का गुप्त मंत्र क्या है?

मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

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