शिव आरती : ॐ जय शिव ओंकारा | Shiv Ji Ki Aarti Lyrics : Om Jai Shiv Omkara Lyrics, Image, Pdf with Meaning

चलिए यहां पढ़ते हैं ओम जय शिव ओंकारा यह शिव जी की आरती जो कि भगवान शिव की पूजा के बाद स्मरण की जाती है यह आरती सोमवार की आरती के नाम से भी जानी जाती है आरती के Lyrics के बाद PDF और Video भी है जरूर देखे।


Shiv Aarti Lyrics In Hindi | भोले शंकर जी की आरती

॥ आरती ॥

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥

॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥


Shiv Aarti Pdf

शिव जी की आरती ॐ जय शिव ओमकारा आरती Lyrics हिंदी में PDF के लिए निचे क्लिक करे 👇👇👇


यह भी पढ़ें

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रकालभैरवाष्टक

Shiv Aarti Video


Shiv Aarti Image

shiv aarti image
ShivJi ki Aarti Image

शिव जी की आरती के पूरा होने के बाद यह पूजा में उपस्थित सभी व्यक्ति को दिखाया जाता है, कि वह अंधेरे को हटाने के प्रतीक पवित्र दीपक के आग को देखें और थोड़ा स्पर्श करें।

Shiv Chalisa Lyrics In Hindi 3 1920x1080 1 e1679587629188
Shiv JI photo

Shiv Ji Aarti with Meaning | शिव आरती का अर्थ

जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा।।

हे भगवान शिव! आपकी जय हो। हे ॐ शब्द के रचियता भगवान शिव! आपकी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवताओं के स्वरुप आप ही हो अर्थात सभी ईश्वर व देवता आप ही के रूप हैं। यहाँ भगवान शिव को त्रिदेव का रूप बताया गया हैं अर्थात वे ही ब्रह्मा हैं, वे ही विष्णु हैं और वे ही शिव हैं।

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।।

आप ही एक मुख वाले नारायण हैं, आप ही चार मुख वाले परम ब्रह्मा हैं, आप ही पांच मुख वाले भगवान शिव हैं। आप ही ब्रह्मा के वाहन हंस पर विराजते हैं, आप ही विष्णु के वाहन गरुड़ के वाहक हैं और आप ही शिव के वाहन बैल के ऊपर विराजित हैं।

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।

ब्रह्मा की भांति आपकी दो भुजाएं हैं, विष्णु की भांति आपकी चार भुजाएं हैं व शिव की भांति दस भुजाएं हैं। आपके अंदर त्रिदेवों के गुण हैं और तीनों लोकों में आप आमजन के बीच प्रिय हो।

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी।।

ब्रह्मा की भांति रुद्राक्ष की माला, विष्णु की भांति सुगन्धित पुष्पों की माला तो शिव की भांति राक्षसों के कटे हुए सिर की माला आपने पहनी हुई हैं। ब्रह्मा की भांति चंदन का तिलक, विष्णु की भांति मृगमद कस्तूरी का तिलक तो शिव की भांति चंद्रमा आपके मस्तक पर सुशोभित हैं।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।।

आपने ब्रह्मा की भांति श्वेत वस्त्र, विष्णु की भांति पीले वस्त्र तो शिव की भांति बाघ की खाल के वस्त्र पहने हुए हैं। आपके साथ में ब्रह्मा जी के अनुयायी अर्थात ऋषि-मुनि व चारों वेद, विष्णु के अनुयायी गरुण व धर्मपालक, शिवजी के अनुयायी भूत, प्रेत इत्यादि हैं।

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखकारी जगपालन कारी।।

आपके हाथों में भगवान ब्रह्मा की भांति कमंडल, विष्णु की भांति चक्र तो शिव की भांति त्रिशूल हैं। आप ही ब्रह्मा की भांति इस विश्व का निर्माण करते हो, विष्णु की भांति इसका संचालन करते हो तो शिव की भांति इसका संहार करते हो।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।।

कोई अविवेकी व्यक्ति भी यह जान सकता हैं कि ब्रह्मा, विष्णु व सदाशिव आप ही के रूप हैं। ब्रह्मांड के प्रथम अक्षर ॐ के मध्य में ये तीनों ईश्वर विराजमान हैं।

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी।।

भगवान महादेव अपनी नगरी काशी में विश्वनाथ रूप में विराजते हैं जिनकी सवारी नंदी हैं और जो ब्रह्मचारी भी हैं अर्थात मोह-माया को त्यागने वाले। जो भी भक्तगण उन्हें प्रतिदिन सुबह उठकर भोग लगाता हैं, उस पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

त्रिगुण शिव जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।।

तीनों गुणों से युक्त भगवान शिव जी की आरती जो कोई भी भक्त करता हैं, शिवानन्द स्वामी जी के अनुसार उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

Also Read : Ram ji aarti , Vishnu Ji Ki Aarti , Ganesh ji ki Aarti, महावीर चालीसा,


यह भी पढ़ें

शिव रुद्राष्टकश्री शिव चालीसा

आरती कब की जाती है?

आरती भगवान की पूजा के बाद स्मरण की जाती है।

शाम की आरती कब करनी चाहिए?

शाम की आरती सूर्यास्त होने के बाद की जाती है।

आरती खड़े होकर क्यों की जाती है?

आरती करने का सही तरीका खड़े हो कर करना है, खड़े हो कर आरती करने से भगवान के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव दीखता है।

Leave a Comment