यदि कोई साधक रामचरित मानस के इस स्तोत्र का बिना ज्यादा कुछ किए भगवान शिव का ध्यान करते हुए आत्म भक्ति के साथ पाठ करता है, तो उस पर भगवान शिव की कृपा होगी। यह स्तोत्र अल्पकाल में ही कंठस्थ हो जाता है। यह रुद्राष्टक प्रसिद्ध है और शिव को प्रसन्न करने के लिए शीघ्र फल देने वाला है।
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Shiv Rudrashtakam Stotram PDF | शिव रुद्राष्टक स्तोत्र pdf lyrics
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शिव तांडव पढ़ने से क्या लाभ होता है?
इस पाठ को करने से व्यक्ति के चेहरे पर चमक आती है, उसका व्यक्तिगत बल प्रबल होता है। धार्मिक मान्यता है कि शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से हर मनोकामना पूरी होती है। महादेव नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं।
शिव तांडव स्तोत्र कब पढ़ा जाए?
इसका पाठ प्रातः काल या प्रदोष काल में करना चाहिए। – सबसे पहले नहा-धोकर और साफ कपड़े पहनकर ही इसका पाठ करें। – भगवान शिव के चित्र या मूर्ति को प्रणाम कर उनका आवाहन करने के बाद पाठ करें।
रावण ने शिव तांडव क्यों लिखा था?
पौराणिक मान्यता है कि रावण ने अपने देवता महादेव की स्तुति में शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी। मान्यता है कि जब रावण कैलाश लेकर चलने लगा तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से कैलाश पर दबाव डाला। जिससे कैलाश वहीं रुक गया और रावण को दफना दिया गया। इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण की स्तुति को शिव तांडव स्तोत्र कहा गया।